गरीब मजदूर गड्ढा खोदते हुए
गड्ढा खोदते हुए गरीब मजदूर
गरीब मजदूर भारतीय समाज की रीढ़ की हड्डी हैं। वे ऐसे लोग हैं जो दिन-रात मेहनत करके न केवल अपने परिवार का पेट पालते हैं, बल्कि समाज और देश के निर्माण में भी अहम भूमिका निभाते हैं। चाहे सड़क बनानी हो, इमारत खड़ी करनी हो, खेतों में काम करना हो या फिर गड्ढा खोदना हो – हर जगह गरीब मजदूर ही नजर आते हैं। इनका जीवन संघर्षों से भरा होता है, लेकिन फिर भी इनके चेहरे पर उम्मीद की एक किरण हमेशा नजर आती है।
सुबह की शुरुआत
सुबह का समय है। सूरज की पहली किरण भी ठीक से नहीं फूटी, लेकिन एक गरीब मजदूर अपने पुराने से कपड़े पहनकर, फावड़ा, कुदाल और पानी की छोटी सी बोतल लेकर काम पर निकल चुका है। उसका शरीर कमजोर जरूर है, लेकिन उसका हौसला मजबूत है। रास्ते में वह एक ठेला चायवाले से एक कप चाय लेता है, वहीं खड़ा होकर सूखी रोटी खाता है और आगे बढ़ जाता है।
गड्ढा खोदने का काम
मजदूर को आज एक सरकारी योजना के तहत गड्ढा खोदने का काम मिला है। यह काम 8 सप्ताह तक चलेगा, और उसे रोज़ 10 फीट गहरा गड्ढा खोदना है। सूरज चढ़ चुका है, गर्मी तेज हो रही है, लेकिन वह अपने फावड़े से जमीन पर वार करता रहता है। हर वार उसके पसीने को और ज्यादा बहा देता है। उसके हाथों में छाले हैं, लेकिन वह रुकता नहीं।
धीरे-धीरे मिट्टी की परतें हटती जाती हैं, और गड्ढा गहरा होता जाता है। वह खुद ही मिट्टी बाहर फेंकता है, कभी-कभी दूसरा मजदूर उसकी मदद कर देता है। कई बार पत्थर निकल आते हैं जिन्हें तोड़ने में काफी वक्त लग जाता है। लेकिन वह शिकायत नहीं करता, बस अपना काम करता रहता है।
मजदूरी का इंतजार
इतनी मेहनत के बाद भी मजदूर को रोज का भुगतान नहीं मिलता। उसे हफ्ते या महीने के अंत में पैसा दिया जाता है। वह हर दिन यह सोचता है कि कब उसे मजदूरी मिलेगी ताकि वह घर जाकर राशन ला सके, बच्चों की फीस भर सके या बीमार पत्नी की दवा ला सके।
मजदूर का सपना
गड्ढा खोदते-खोदते वह कई बार ठहर जाता है, पसीना पोंछता है और आसमान की ओर देखता है। उसकी आंखों में एक सपना तैरता है – अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा कर एक अच्छा इंसान बनाने का। वह नहीं चाहता कि उसका बेटा या बेटी भी गड्ढा खोदते हुए बड़ा हो। वह चाहता है कि उसके बच्चे एक साफ दफ्तर में कुर्सी पर बैठकर काम करें। यही सोच उसे और मेहनत करने की ताकत देती है।
8 सप्ताह का संघर्ष
8 सप्ताह का समय बीतता है। हर दिन वह सुबह से शाम तक एक ही काम करता है – गड्ढा खोदना। कभी बारिश आती है, कभी तेज धूप, लेकिन वह हार नहीं मानता। उसके कपड़े और जूते कई बार फट जाते हैं, लेकिन उसके इरादे नहीं टूटते। उसकी आंखों में उम्मीद है कि यह काम खत्म होते ही उसे कुछ पैसे मिलेंगे, जिससे वह अपने परिवार के लिए दो वक़्त की रोटी जुटा सकेगा।
आखिरकार 8 सप्ताह बाद गड्ढा पूरा हो जाता है। वह उस गड्ढे को देखता है और अपने दिल में गर्व महसूस करता है। वह जानता है कि यह सिर्फ एक गड्ढा नहीं, बल्कि उसकी मेहनत का प्रतीक है।
समाज की भूमिका
हमारे समाज में ऐसे लाखों गरीब मजदूर हैं जो इसी तरह मेहनत करते हैं, लेकिन उन्हें उतना सम्मान और अधिकार नहीं मिलता जितना मिलना चाहिए। हमें मजदूरों की स्थिति सुधारने के लिए कदम उठाने चाहिए। उन्हें उचित मजदूरी, काम के दौरान सुरक्षा, और स्वास्थ्य की सुविधा मिलनी चाहिए। सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाएं जैसे मनरेगा, मजदूर कार्ड, और बीमा योजनाएं तभी सफल होंगी जब वे सही मजदूर तक पहुंचें।
निष्कर्ष
गड्ढा खोदते हुए गरीब मजदूर का जीवन हमें सिखाता है कि मेहनत ही असली पूजा है। वह बिना किसी शिकायत के हर दिन देश और समाज के लिए अपना योगदान देता है। हमें उनके संघर्ष को समझना चाहिए, उनका सम्मान करना चाहिए, और उनके जीवन को बेहतर बनाने के लिए ईमानदारी से प्रयास करना चाहिए।
गरीब मजदूर के पसीने की हर बूंद हमें याद दिलाती है कि अगर आज हम सुविधाजनक जीवन जी रहे हैं, तो उसमें कहीं न कहीं उस मजदूर की मेहनत छिपी हुई है। इसलिए, चलिए आज से हम संकल्प लें कि मजदूरों को न केवल इंसान समझें, बल्कि उन्हें उनका हक और सम्मान भी दें। तभी एक सच्चे और समतामूलक समाज का निर्माण संभव है।
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