तड़वी (पटेल) क्या होता है – श्री कुंदन सिंह वाखला, पिता श्री सोमजी वाखला (गांव कोहिवाव, तहसील भाबरा, जिला अलीराजपुर, मध्यप्रदेश) भारत

तड़वी (पटेल) क्या होता है – श्री कुंदन सिंह वाखला, पिता श्री सोमजी वाखला (गांव कोहिवाव, तहसील भाबरा, जिला अलीराजपुर, मध्यप्रदेश) के संदर्भ में


🔷 प्रस्तावना

भारत एक कृषि प्रधान और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध देश है, जहां गांवों की जीवनशैली आज भी परंपरा, रीति-रिवाज और सामाजिक संरचना से जुड़ी हुई है। गांवों में शासन और समाज संचालन की एक पुरानी और प्रभावशाली परंपरा है – ग्राम मुखिया की। मध्यप्रदेश के अलीराजपुर जिले जैसे आदिवासी बहुल इलाकों में, इस पद को "तड़वी" कहा जाता है। कहीं-कहीं इसे पटेल भी कहा जाता है, लेकिन यहां "तड़वी" शब्द ही प्रचलित और मान्य है।

इसी परंपरा में, श्री कुंदन सिंह वाखला, पिता श्री सोमजी वाखला, गांव कोहिवाव, तहसील भाबरा, जिला अलीराजपुर (मध्य प्रदेश) के तड़वी हैं। उनका नाम और पद न केवल उनके परिवार का सम्मान बढ़ाता है, बल्कि पूरे गांव के लिए नेतृत्व, न्याय और परंपरा का प्रतीक है।


🔷 तड़वी (पटेल) क्या होता है?

"तड़वी" गांव का परंपरागत मुखिया होता है, जिसे गांववाले स्वयं सामाजिक मान्यता देते हैं। यह कोई सरकारी या राजनीतिक पद नहीं होता, लेकिन उसका सामाजिक प्रभाव और अधिकार बहुत बड़ा होता है।

तड़वी का अर्थ और महत्व:

  • वह गांव का नेता, मार्गदर्शक और न्यायाधीश होता है।
  • वह गांव के संस्कृतिक, सामाजिक और पारिवारिक मामलों का संचालन करता है।
  • तड़वी को गांव के बुजुर्ग, अनुभवी और सर्वमान्य व्यक्ति के रूप में देखा जाता है।

आदिवासी समाज में तड़वी की बात को अंतिम माना जाता है। वह सरकारी पंचायत से पहले का पंच है, जो अपने अनुभव, निष्पक्षता और समाज के हित में निर्णय करता है।


🔷 गांव कोहिवाव और अलीराजपुर क्षेत्र का सामाजिक संदर्भ

कोहिवाव गांव, जो कि भाबरा तहसील में स्थित है, मध्यप्रदेश के पश्चिमी भाग में आता है। यह क्षेत्र विशेष रूप से भील, भिलाला और अन्य आदिवासी समुदायों से बसा हुआ है। यहां परंपराएं पीढ़ियों से चली आ रही हैं, और समाज आज भी सामूहिक सहयोग से चलता है। इस सहयोग के केंद्र में होता है – गांव का तड़वी


🔷 श्री कुंदन सिंह वाखला – गांव कोहिवाव के तड़वी

श्री कुंदन सिंह वाखला, पिता श्री सोमजी वाखला, कोहिवाव गांव के वर्तमान तड़वी हैं। उनके परिवार ने कई वर्षों से इस पद की गरिमा बनाए रखी है।

उनकी भूमिका और कार्य:

  1. न्याय और समझौता
    गांव में यदि दो परिवारों में विवाद हो – चाहे वह जमीन का हो, रिश्तेदारी का हो या सामाजिक रीतियों का – तो श्री कुंदन सिंह वाखला सबको बुलाकर बैठाते हैं, बात सुनते हैं और निष्पक्ष निर्णय लेते हैं।

  2. परंपरा का संरक्षण
    वह गांव के त्यौहार, धार्मिक अनुष्ठान, पारंपरिक रीति-रिवाजों में अग्रणी भूमिका निभाते हैं। उनकी उपस्थिति आयोजन की गरिमा बढ़ाती है।

  3. सरकारी योजनाओं से जोड़ना
    वे सरकारी योजनाओं जैसे मनरेगा, आवास योजना, शौचालय निर्माण आदि को गांव तक लाने में सक्रिय रहते हैं। अधिकारी जब गांव आते हैं, तो सबसे पहले तड़वी से ही संपर्क करते हैं।

  4. युवाओं को मार्गदर्शन
    कुंदन सिंह वाखला युवाओं को शिक्षा, नशा मुक्ति और रोजगार के लिए प्रेरित करते हैं। वे गांव के विकास के लिए नई पीढ़ी को जिम्मेदारी सौंपी जा रही भूमिका में देखते हैं।


🔷 तड़वी की जिम्मेदारियाँ – सामाजिक, सांस्कृतिक और प्रशासनिक

  1. ग्राम पंचायत में सहभागिता:
    तड़वी पंचायत का हिस्सा भले न हो, पर उसका मत महत्वपूर्ण होता है। सरपंच भी कई बार निर्णय लेने से पहले तड़वी की राय लेता है।

  2. समाज में एकता बनाए रखना:
    गांव के सभी जातियों, वर्गों और समुदायों को जोड़ना और शांति बनाए रखना तड़वी की जिम्मेदारी है।

  3. सामाजिक नियंत्रण और अनुशासन:
    यदि कोई व्यक्ति गांव के नियमों का उल्लंघन करता है, तो तड़वी उसे समझाता है, दंडित करता है या सुधारने का अवसर देता है।

  4. त्यौहारों और अनुष्ठानों का नेतृत्व:
    होली, दिवाली, भगोरिया, हाट, या ग्राम-देवता की पूजा में तड़वी की भूमिका प्रमुख होती है। बिना उनके नेतृत्व के कोई आयोजन संपूर्ण नहीं माना जाता।


🔷 श्री सोमजी वाखला – तड़वी परंपरा के आधार स्तंभ

श्री सोमजी वाखला, श्री कुंदन सिंह वाखला के पिता, स्वयं भी एक प्रभावशाली और अनुभवी तड़वी रहे हैं। उन्होंने अपने जीवन में गांव की सेवा की, और अपने बेटे को भी इस परंपरा की जिम्मेदारी दी।

  • उन्होंने गांव में सामाजिक न्याय की मजबूत नींव रखी।
  • वे गांव की एकता, सद्भाव और संस्कृति के रक्षक रहे हैं।
  • उनका व्यक्तित्व आज भी गांव के बुजुर्गों के लिए प्रेरणा है।

🔷 तड़वी की भूमिका – आज के समय में

भले ही आज पंचायत, सरकारी अफसर और प्रशासनिक तंत्र ने गांवों में अपनी उपस्थिति बढ़ा ली है, लेकिन तड़वी की भूमिका खत्म नहीं हुई है, बल्कि वह एक सांस्कृतिक और सामाजिक नेतृत्व का प्रतीक बन गया है।

क्यों आज भी तड़वी जरूरी है:

  • वह स्थानीय समाधान देता है – जल्दी, बिना खर्च और बिना कोर्ट-कचहरी।
  • वह लोगों का विश्वास जीत चुका होता है – इसलिए उसका निर्णय लोग मानते हैं।
  • वह सद्भाव, संस्कृति और सहयोग की भावना को जीवित रखता है।

🔷 निष्कर्ष

श्री कुंदन सिंह वाखला, पिता श्री सोमजी वाखला, गांव कोहिवाव, तहसील भाबरा, अलीराजपुर (म.प्र.) के तड़वी हैं – और यह पद केवल एक नाम या ओहदा नहीं, बल्कि सम्मान, जिम्मेदारी और परंपरा का प्रतीक है। उन्होंने गांव के सामाजिक, सांस्कृतिक और विकासात्मक पहलुओं में अनुकरणीय योगदान दिया है।

तड़वी आज भी गांव की आत्मा है। वह गांव को जोड़ता है, सिखाता है, न्याय करता है और नई पीढ़ी को सही राह दिखाता है। श्री कुंदन सिंह और उनके पिता श्री सोमजी वाखला ने इस परंपरा को न केवल निभाया है, बल्कि उसे आगे बढ़ाकर आदर्श प्रस्तुत किया है।


यदि आप चाहें, तो इस लेख का PDF, सांस्कृतिक कार्यक्रम के लिए भाषण प्रारूप, या सरल भाषा में छोटा संस्करण भी बनाया जा सकता है।

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