झाबुआ जिले के प्रसिद्ध मंदिर एवं वेशभूषा संस्कृति आदिवासी कल्चर
झाबुआ, मध्य प्रदेश के पश्चिमी हिस्से में स्थित एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध जिला है, जिसका मुख्यालय झाबुआ शहर है। यह जिला गुजरात के दाहोद, राजस्थान के बांसवाड़ा, और मध्य प्रदेश के धार, अलीराजपुर व रतलाम जिलों से घिरा है। 16वीं शताब्दी में स्थापित, झाबुआ का क्षेत्रफल लगभग 3,782 वर्ग किलोमीटर है और यह बहादुर सागर झील के किनारे बसा है। यह मूलतः आदिवासी बाहुल्य जिला है, जहाँ भील, भीलाला और पटेलिया जनजातियाँ निवास करती हैं, जिन्हें 'भारत के बहादुर धनुष पुरुष' के रूप में जाना जाता है।
झाबुआ का इतिहास प्राचीन और गौरवशाली है। प्राचीन काल में यहाँ नागवंशी और राठौर राजवंशों का शासन था। 1584 में केशो दास ने झाबुआ रियासत की स्थापना की, जिन्हें मुगल बादशाह अकबर ने राजा की उपाधि दी थी। यह क्षेत्र मुगल, मराठा और ब्रिटिश शासन के अधीन रहा, और 1947 में भारत में विलय हुआ। झाबुआ की भगोरिया हाट, होली से पहले आयोजित होने वाला सांस्कृतिक उत्सव, आदिवासी संस्कृति का प्रतीक है, जहाँ लोग पारंपरिक वेशभूषा, नृत्य और संगीत के साथ उत्सव मनाते हैं।[](
आर्थिक रूप से, झाबुआ कृषि पर निर्भर है, जहाँ मक्का, धान, गेहूँ, चना और कपास प्रमुख फसलें हैं। हालाँकि, कम वर्षा और पहाड़ी भूभाग के कारण कृषि चुनौतीपूर्ण है। यह जिला कड़कनाथ मुर्गी के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध है, जिसे जीआई टैग प्राप्त है। आदिवासी हस्तशिल्प, विशेष रूप से बांस की वस्तुएँ, गुड़िया और आभूषण, यहाँ की विशेषता हैं।[](
झाबुआ के प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं- देवझिरी (प्राचीन शिव मंदिर), पीपलखूंटा, समोई, और हाथीपावा पहाड़ी। माही और अनास नदियाँ यहाँ की जीवनरेखा हैं। परिवहन की दृष्टि से, मेघनगर रेलवे स्टेशन और राष्ट्रीय राजमार्ग 47 झाबुआ को जोड़ते हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार, जिले की जनसंख्या लगभग 10.25 लाख है, जिसमें साक्षरता दर 43.3% है।[](
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